भारतीय राजनीति में परिवारवाद (Political Dynasty) और भाई-भतीजावाद (Nepotism) हमेशा से विमर्श का हिस्सा रहे हैं। अक्सर देखा जाता है कि पिता की सियासी विरासत बेटे-बेटियां ही संभालते हैं, जिसका एक लंबा इतिहास है। लेकिन कई बार पार्टी में बगावत, अनुशासनहीनता या अन्य कारणों से पिता को अपने ही बच्चों को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखाना पड़ता है। ये घटनाएं Indian Politics की जटिलताओं और Family Politics के भीतर के शक्ति संघर्षों को उजागर करती हैं। उत्तर से दक्षिण तक कई ऐसे उदाहरण मिलते हैं जब एक पिता ने अपने पुत्र या पुत्री को अपनी ही बनाई पार्टी से बाहर कर दिया। हाल ही में तमिलनाडु से लेकर बिहार और उत्तर प्रदेश तक, Party Expulsion के ऐसे कई मामले सामने आए हैं, जो राजनीतिक गलियारों में खूब चर्चा में रहे।
अंबुमणि रामदास: जब पिता रामदास ने बेटे को पीएमके से निकाला
तमिलनाडु में भारतीय जनता पार्टी की सहयोगी पीएमके (पट्टाली मक्कल कच्ची) के संस्थापक एस. रामदास ने अपने बेटे अंबुमणि रामदास को पार्टी से निष्कासित कर दिया। एस. रामदास ने पार्टी की कमान फिर से अपने हाथों में ले ली है। उन्होंने सार्वजनिक रूप से कहा कि अंबुमणि पीएमके को बर्बाद करने की कोशिश कर रहे थे, वे राजनेता बनने के लायक नहीं हैं और उन्होंने मनमाने ढंग से काम किया है। रामदास ने यह भी कहा कि उनके बिना अंबुमणि कभी आगे नहीं बढ़ पाते।
पिता-पुत्र के बीच विवाद की शुरुआत तब हुई जब अंबुमणि ने स्वतंत्र रूप से पार्टी कार्यक्रमों की अगुवाई करनी शुरू कर दी। उन्होंने वन्नियार समुदाय के लिए आंतरिक आरक्षण की मांग को लेकर एक आंदोलन का ऐलान किया, जिसमें उनके पिता रामदास ने हिस्सा लेने से इनकार कर दिया था। मई में अपने पिता के साथ चल रहे विवाद के बीच अंबुमणि ने कहा था कि पीएमके सिर्फ एक पार्टी नहीं, बल्कि एक बड़ा आंदोलन है और यह आंदोलन किसी व्यक्ति विशेष का नहीं है। जुलाई में पार्टी की गवर्निंग बॉडी की बैठक भी पिता-पुत्र ने अलग-अलग बुलाई थी। इसी महीने रामदास ने अंबुमणि पर उनकी जासूसी करने और घर में टैपिंग डिवाइस लगाने का आरोप भी लगाया था। अंबुमणि ने 2004 से 2009 तक मनमोहन सिंह सरकार में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री के रूप में काम किया था। यह मामला Political Dynasty में टूट का एक बड़ा उदाहरण है।
के. कविता: केसीआर ने अपनी ही बेटी को बीआरएस से किया सस्पेंड
तेलंगाना के पूर्व मुख्यमंत्री और भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) प्रमुख के. चंद्रशेखर राव (केसीआर) ने अपनी बेटी के. कविता को भारत राष्ट्र समिति से सस्पेंड कर दिया। कविता के खिलाफ यह कार्रवाई पार्टी संगठन के वरिष्ठ नेताओं की सार्वजनिक आलोचना के बाद हुई। पूर्व विधान परिषद सदस्य कविता ने अपने पिता चंद्रशेखर राव को “राक्षसों से घिरा भगवान” बताया था।
कविता ने अपनी ही पार्टी के वरिष्ठ नेताओं हरिश राव और संतोष राव पर गंभीर आरोप लगाए। उन्होंने दावा किया कि इन नेताओं ने उनके पिता और बीआरएस सुप्रीमो चंद्रशेखर राव की छवि को बर्बाद करने की साजिश रची है, जिसमें तेलंगाना के मुख्यमंत्री रेवंत रेड्डी का भी हाथ है। बीआरएस पार्टी सूत्रों के अनुसार, कविता जब से दिल्ली शराब घोटाले में गिरफ्तारी के बाद रिहा हुई हैं, तभी से केसीआर ने उनसे दूरी बना ली थी। यह घटना भी Nepotism और आंतरिक संघर्षों को दिखाती है।
कविता की यह कहानी वाईएसआर कांग्रेस पार्टी के प्रमुख जगन मोहन रेड्डी की बहन वाईएस शर्मिला जैसी है। शर्मिला ने संपत्ति विवाद के बाद आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे अपने भाई जगनमोहन रेड्डी के खिलाफ बगावत कर दी थी। शर्मिला ने तेलंगाना में YSRTP नाम से अपनी पार्टी भी बनाई, हालांकि बाद में उन्होंने अपनी पार्टी का कांग्रेस में विलय कर दिया और आंध्र प्रदेश कांग्रेस कमेटी की अध्यक्ष बनाई गईं। हालांकि, कविता ने अब तक अपने भविष्य के कदम को लेकर कोई ऐलान नहीं किया है।
तेज प्रताप यादव: लालू यादव ने बड़े बेटे को दिखाया आरजेडी से बाहर का रास्ता
बिहार की मुख्य विपक्षी पार्टी और महागठबंधन की अगुवा राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) के प्रमुख लालू यादव ने अपने बड़े बेटे तेज प्रताप यादव को छह साल के लिए पार्टी से निकाल दिया। लालू ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर पोस्ट कर तेज प्रताप को “गैर जिम्मेदाराना और सामाजिक मूल्यों के खिलाफ आचरण” के लिए यह कार्रवाई करने की बात कही थी। तेज प्रताप के खिलाफ यह कार्रवाई उनके सोशल मीडिया हैंडल से हुई एक पोस्ट को लेकर हुई, जिसमें उनके 12 साल से अनुष्का यादव के साथ रिलेशनशिप में होने की बात कही गई थी।
तेज प्रताप यादव ने बाद में यह पोस्ट डिलीट कर एक अन्य पोस्ट में अकाउंट हैक किए जाने की बात कही थी। उन्होंने यह भी कहा कि उन्हें और परिवार को बदनाम करने के लिए तस्वीरें एडिट कर पोस्ट की गई थीं। तेज प्रताप की यह सफाई काम नहीं आई और लालू यादव ने उन्हें छह साल के लिए पार्टी से निकाल दिया। बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू यादव ने कहा कि “निजी जीवन में नैतिक ईमानदारी की कमी सामाजिक न्याय के लिए पार्टी की व्यापक लड़ाई को कमजोर करती है। तेज प्रताप का व्यवहार उनके पारिवारिक मूल्यों या परंपराओं को नहीं दर्शाता है।” यह घटना Family Politics के भीतर के गंभीर मतभेदों को दर्शाती है।
अखिलेश यादव: जब मुलायम सिंह ने अखिलेश को सपा से किया था निष्कासित
बिहार के पड़ोसी राज्य उत्तर प्रदेश में भी करीब नौ साल पहले इसी तरह का नाटकीय घटनाक्रम देखने को मिला था। 30 दिसंबर 2016 को समाजवादी पार्टी के तत्कालीन प्रमुख मुलायम सिंह यादव ने अपने ही बेटे अखिलेश यादव को छह साल के लिए पार्टी से निकालने का ऐलान कर दिया था। पार्टी संस्थापक मुलायम सिंह ने लखनऊ में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस कर कहा था कि “हमने पार्टी को बचाने के लिए अखिलेश यादव को छह साल के लिए निष्कासित करने का फैसला किया है। हमारे लिए पार्टी सबसे महत्वपूर्ण है।” यह Indian Politics के सबसे चर्चित Party Expulsion के मामलों में से एक है।
अखिलेश तब उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री थे। मुलायम ने उसी प्रेस कॉन्फ्रेंस में यह भी कहा था कि अखिलेश अब सीएम नहीं हैं और सीएम कौन होगा, यह पार्टी तय करेगी। उन्होंने आरोप लगाया था कि “उन्हें सीएम मैंने ही बनाया था और वह अब मेरी सलाह भी नहीं लेते।”
मुलायम सिंह यादव के इस ऐलान के बाद अखिलेश ने अगले ही दिन सपा विधायक दल की बैठक बुला ली थी। अखिलेश की बैठक में तब सपा के 229 में से 200 से ज्यादा विधायक पहुंचे थे और मुख्यमंत्री के लिए उनका समर्थन किया था। सपा विधायक दल की बैठक में बहुमत को लेकर आश्वस्त हो जाने के बाद अखिलेश ने 1 जनवरी 2017 को सपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक बुला ली थी। इस कार्यकारिणी के बाद राष्ट्रीय अध्यक्ष के पद से मुलायम सिंह यादव को हटाकर अखिलेश की ताजपोशी का ऐलान कर दिया गया। मामला कोर्ट भी गया लेकिन पार्टी का निशान और कमान अंततः अखिलेश के ही पास रहे। यह Political Dynasty में सत्ता हस्तांतरण और संघर्ष का एक जटिल उदाहरण था।
ये सभी घटनाएं दर्शाती हैं कि Family Politics में सिर्फ विरासत नहीं मिलती, बल्कि कभी-कभी भारी कीमत भी चुकानी पड़ती है। सत्ता, नियंत्रण और वैचारिक मतभेद अक्सर ऐसे मोड़ पर ले आते हैं, जहां पारिवारिक रिश्ते भी राजनीतिक हितों के आगे फीके पड़ जाते हैं।