कल्पना कीजिए एक ऐसा भारत, जहाँ हर बच्चा स्कूल जाए, हर आंख में सीखने का उत्साह हो और हर घर में शिक्षा की रौशनी फैले। यह सपना सिर्फ सपनों तक न रह जाए, इसके लिए शुरू हुआ था एक ऐतिहासिक कदम— एसएसए, यानी सर्व शिक्षा अभियान।
वर्ष 2001 में जब यह अभियान प्रारंभ हुआ, तब देश में करोड़ों ऐसे बच्चे थे जिनके लिए स्कूल जाना या पढ़ाई करना दूर की बात थी। गांव-गांव, कस्बे-कस्बे, हर ओर—एक खामोशी सी थी। मगर सरकार ने संकल्प लिया कि अब इस मौन को तोड़ना है, हर बच्चे को शिक्षा तक पहुंचाना है। तभी “शिक्षा सबका अधिकार है” का नारा गूंजा और एसएसए की शुरुआत के साथ स्कूलों की घंटियां बजने लगीं।
एसएसए केवल एक सरकारी प्रोग्राम नहीं, बल्कि करोड़ों आशाओं की डोर है। इसका उद्देश्य सीधा-सपाट है—6 से 14 वर्ष के हर बच्चे के लिए निःशुल्क एवं अनिवार्य प्रारंभिक शिक्षा सुनिश्चित करना। यह केवल चारदीवारी तक नहीं सीमित है; किताब-कॉपी, शिक्षक, टोपी तक हर जरूरत की जिम्मेदारी इस अभियान ने खुद संभाली।
इस अभूतपूर्व प्रयास में देश के लाखों गांव और बस्तियां भी इसमें शामिल हुईं। एसएसए के तहत 19 करोड़ से भी अधिक बच्चों को शिक्षा से जोड़ा गया[1]। पंचायतें, स्थानीय संस्थाएं और स्वयंसेवी संगठन—सबने मिलकर गांव-गांव स्कूल खोले, शिक्षकों की नियुक्ति हुई, बच्चियों के लिए खास सुविधाओं की व्यवस्था की गई[4]।
खास बात यह भी है कि एसएसए ने केवल पढ़ाई-लिखाई तक सीमित न रहते हुए बच्चों के सर्वांगीण विकास पर जोर दिया—जीवन कौशल, विज्ञान, कंप्यूटर, खेल-कूद, सबको पाठ्यक्रम में जोड़ा गया[4]। 2018 में, इस अभियान को और व्यापक रूप देकर ‘समग्र शिक्षा अभियान’ के तहत शामिल किया गया[4]।
लड़कियों की शिक्षा के लिए विशेष प्रोग्राम चलाए गए, ताकि कोई भी बच्ची पीछे न रहे। एसएसए के तहत ‘नेशनल प्रोग्राम फॉर एजुकेशन ऑफ गल्र्स ऐट एलीमेंट्री लेवल’ नाम से 2003 में उप-कार्यक्रम शुरू किया गया, जिसने वंचित लड़कियों को शिक्षा से जोड़ने में बड़ी भूमिका निभाई[4]।
देश के किसी भी गाँव में चले जाइए, आपको एक रंगीन स्कूल, हंसते बच्चे और शिक्षकों की लगन दिखाई देती है—यह एसएसए के जमीनी बदलाव का ज्वलंत उदाहरण है। शहरी और ग्रामीण फासला घटा है, माता-पिता को अपने बच्चों को स्कूल भेजना गर्व का विषय लगने लगा है।
आज जब हम आगे बढ़ते भारत का सपना देखते हैं, तो यह मानना होगा कि एसएसए जैसे अभियानों ने देश के भविष्य को मजबूत किया है। शिक्षा के बिना समाज का सशक्तिकरण असंभव है—यह अभियान इसी आलोक में चलता रहा है।
भविष्य में जरूरत है कि इसे और व्यापक बनाया जाए, डिजिटल तकनीक और आधुनिक शैक्षिक साधनों से जोड़ा जाए। ताकि हर बच्चा, हर कोना, शिक्षा की रोशनी से जगमगाए और ‘पढ़े भारत, बढ़े भारत’ का संकल्प साक्षात् धरातल पर उतर सके।