शतरंज की रानी दिव्या देशमुख (Chess Player Divya Deshmukh) का खुलासा: टाटा स्टील टूर्नामेंट (Tata Steel Tournament) में दर्शकों ने किया लैंगिक भेदभाव
Who is Divya Deshmukh?
दिव्या देशमुख की कहानी (Divya Deshmukh Journey) शुरू होती है महाराष्ट्र के नागपुर शहर में, 2005 के दिसंबर में। एक मध्यम-वर्गीय परिवार में जन्मी दिव्या को बचपन से ही जिज्ञासा और सीखने की तीव्र लालसा थी। अपने पिता, जो खुद शतरंज के शौकीन थे, से प्रेरणा लेकर उन्होंने महज 11 साल की उम्र में इस जटिल खेल की बारीकियों को सीखना शुरू किया।
दिव्या की शुरुआती शिक्षा नागपुर के सेंट पीटर स्कूल में हुई, जहाँ शतरंज के प्रति उनके जुनून को शिक्षकों का पूरा समर्थन मिला। 2019 में उन्होंने विद्या निकेतन स्कूल में दाखिला लिया, जो खेल प्रतिभाओं को खास प्रशिक्षण प्रदान करता है। दिव्या की प्रतिभा को देखते हुए स्कूल ने उनके शतरंज कोचिंग और प्रतियोगिताओं में भाग लेने के लिए आर्थिक सहायता भी प्रदान की।
दिव्या के परिवार ने हमेशा उनके सपनों को पंख लगाए हैं। उनके पिता न सिर्फ उनके पहले गुरु थे, बल्कि हर जीत और हार में उनके मजबूत स्तंभ बने रहे। उनकी माँ का निरंतर समर्थन और प्रोत्साहन ने दिव्या को कठिन वक्त में हार न मानने की सीख दी।
शतरंज के प्रति जुनून ने दिव्या को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विजय का स्वाद चखने का मौका दिया। 12 साल की उम्र में एशियाई अंडर-16 शतरंज चैम्पियनशिप में रजत पदक जीतना उनकी प्रतिभा का पहला बड़ा प्रमाण था। इसके बाद विश्व जूनियर शतरंज चैम्पियनशिप और वर्ल्ड टीम जूनियर शतरंज चैम्पियनशिप में भागीदारी ने उनके शतरंज को निखारा।
शतरंज की प्रतिभा का उद्भव: Divya Deshmukh Chess Achievements
दिव्या की शतरंज की कहानी महज 11 साल की उम्र से शुरू होती है। उनके पिता के मार्गदर्शन में उन्होंने इस खेल की बारीकियों को सीखना शुरू किया। कुछ ही सालों में उनकी प्रतिभा ने सबका ध्यान खींचा और कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिताओं में जीत हासिल की। उनकी उपलब्धियों की सूची लंबी है:
- 2013: अंडर-12 शतरंज राष्ट्रीय चैम्पियन
- 2017: एशियाई अंडर-16 शतरंज चैम्पियनशिप में रजत पदक
- 2018: विश्व जूनियर शतरंज चैम्पियनशिप में 12वां स्थान
- 2019: वर्ल्ड टीम जूनियर शतरंज चैम्पियनशिप में रजत पदक
- 2022: वर्ल्ड वूमेन कैंडीडेट्स टूर्नामेंट में भागीदारी
ऐतिहासिक जीत और नया रिकॉर्ड: Divya Deshmukh Records
लेकिन दिव्या का असली परचम 2023 में फहराया। भारत की पहली रैपिड महिला चेम्पियन बनकर उन्होंने इतिहास रचा। उनकी यह जीत न सिर्फ उनकी मेहनत का फल थी, बल्कि भारतीय शतरंज के लिए भी एक गौरव का क्षण था। दिव्या का शतरंज रेटिंग पॉइंट भी तेजी से बढ़ा और 2023 के आखिर तक वह भारत की तीसरी सबसे बेहतरीन महिला शतरंज खिलाड़ी बन चुकी थीं।
टाटा स्टील टूर्नामेंट की कड़वी सच्चाई: At the Tata Steel Tournament, Divya Deshmukh Faces Sexist Remarks from the Audience.
हाल ही में संपन्न टाटा स्टील टूर्नामेंट (Tata Steel Chess Masters in Wijk Aan Zee, Netherlands) में दिव्या को लैंगिक भेदभाव का सामना करना पड़ा, जिसने पूरे शतरंज जगत को हिला कर रख दिया। अपने इंस्टाग्राम पोस्ट (Divya Deshmukh Instagram Post) में उन्होंने कुछ दर्शकों के व्यवहार से हुए निराशाजनक अनुभव को साझा किया। उन्होंने बताया कि कैसे उनके गेमप्ले पर ध्यान देने के बजाय, कुछ लोगों ने उनके लुक्स और कपड़ों पर टिप्पणी की। यहां तक कि कुछ अपमानजनक टिप्पणियां भी की गईं। इस अनुभव ने उन्हें गहरा असर पहुंचाया और इसीलिए उन्होंने अपनी आवाज उठाने का फैसला किया।
दिव्या के मुताबिक, “यहां तक कि जब मैंने एक अच्छा मूव खेला, तो दर्शकों के कुछ हिस्सों से कोई प्रतिक्रिया नहीं आई। लेकिन जब मैंने कपड़े बदले या अपनी हेयरस्टाइल को ठीक किया, तो अचानक मुझे टिप्पणियां मिलने लगीं। जैसे मेरे बालों या कपड़ों का चुनाव किसी तरह मेरे गेम से ज्यादा महत्वपूर्ण हो गया हो।”
लैंगिक समानता की पुरज़ोर वकालत
इस कड़वे अनुभव के बावजूद, दिव्या हार मानने वाली नहीं हैं। उन्होंने खुलकर बोलकर लैंगिक भेदभाव का मुद्दा उठाया है और आशा जताई है कि उनकी कहानी भविष्य की पीढ़ी के लिए चीजों को बदलने में मदद करेगी।
उनका संदेश स्पष्ट है, “शतरंज एक ऐसा खेल है जो हर किसी के लिए है, पुरुषों और महिलाओं दोनों के लिए। लेकिन लैंगिक भेदभाव अभी भी एक वास्तविकता है, खासकर महिला शतरंज खिलाड़ियों के लिए। मुझे उम्मीद है कि मेरी कहानी सुनकर कोई और शर्मिंदा महसूस न करे। हमें उम्मीद है कि आने वाली पीढ़ी के लिए चीजें अलग होंगी, जहां खेल पर ध्यान दिया जाएगा, न कि किसी के दिखने पर।”
दिव्या की कहानी सिर्फ एक शतरंज खिलाड़ी की कहानी नहीं है, बल्कि लैंगिक समानता के लिए संघर्ष की कहानी है। उन्होंने साहस दिखाया है और उम्मीद जताई है कि उनकी आवाज भविष्य में बदलाव लाएगी। यह उम्मीद की जाती है कि शतरंज की दुनिया और खेल जगत हर किसी के लिए समान अवसर और सम्मान का माहौल बनाने की दिशा में पहल करेगा।