उत्तर प्रदेश सरकार सड़क दुर्घटनाओं में होने वाली मौतों को कम करने और सड़क सुरक्षा को बढ़ावा देने के लिए एक महत्वपूर्ण पहल करने जा रही है। 1 सितंबर से पूरे राज्य में ‘नो हेलमेट, नो फ्यूल’ अभियान लागू होगा। इस अभियान के तहत, दोपहिया वाहन चालकों को बिना हेलमेट पेट्रोल नहीं मिलेगा। यह कदम निश्चित रूप से नियमों का पालन सुनिश्चित करने और लोगों की जान बचाने की दिशा में एक साहसिक प्रयास है, जिसकी व्यापक स्तर पर सराहना की जा रही है।
‘नो हेलमेट, नो फ्यूल’: एक सराहनीय कदम, पर गंभीर चुनौती भी
टू-व्हीलर हेलमेट मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (2WHMA) के अध्यक्ष राजीव कपूर ने इस अभियान की प्रशंसा की है, लेकिन साथ ही उन्होंने एक बड़े सार्वजनिक सुरक्षा संकट की ओर भी ध्यान दिलाया है। कपूर ने चेतावनी दी है कि यदि इस पहल को प्रभावी ढंग से लागू करने के लिए कुछ महत्वपूर्ण सुधार नहीं किए गए, तो इसके अप्रत्याशित और नकारात्मक परिणाम भी सामने आ सकते हैं।
नकली हेलमेट का बढ़ता खतरा: जानलेवा सच्चाई
राजीव कपूर के अनुसार, जब संगठित बाजार में असली हेलमेट की मांग स्थिर रहती है, तब असंगठित क्षेत्र इसका फायदा उठाता है और बड़े पैमाने पर नकली हेलमेट बनाने लगता है। चौंकाने वाली बात यह है कि बाजार में उपलब्ध लगभग 95% नकली हेलमेट BIS (भारतीय मानक ब्यूरो) लाइसेंस का दावा करते हैं, जबकि वे सुरक्षा मानकों को पूरा नहीं करते। 110 रुपये जितनी कम कीमत वाले ये घटिया हेलमेट उत्तर प्रदेश, गाजियाबाद, लोनी और दिल्ली-करारी जैसे इलाकों में बड़ी मात्रा में बेचे जा रहे हैं। ये नकली हेलमेट सड़क दुर्घटनाओं में लोगों की जान ले रहे हैं, क्योंकि वे किसी भी प्रकार की सुरक्षा प्रदान करने में पूरी तरह अक्षम हैं। कपूर ने इन नकली हेलमेट्स की आपूर्ति को रोकने और इनके निर्माताओं पर कड़ी कार्रवाई करने की तत्काल आवश्यकता पर बल दिया है।
‘मिशन सेव लाइव्स 2.0’ जागरूकता पहल के आंकड़े और भी चिंताजनक तस्वीर पेश करते हैं। इसके अनुसार, बाजार में 110 रुपये के आसपास बिकने वाले लगभग 95% हेलमेट नकली हैं। ये हेलमेट बेहद असुरक्षित हैं और हल्की सी चोट या हथौड़े के मामूली वार से भी टूट जाते हैं, जो इन्हें ‘नकली दवाइयों’ जितना ही खतरनाक बनाता है। ‘नो हेलमेट, नो फ्यूल’ नियम के चलते लोग सिर्फ पेट्रोल लेने के लिए इन नकली हेलमेट का इस्तेमाल कर रहे हैं, अपनी सुरक्षा को ताक पर रखकर वे जान के खतरे को अनदेखा कर रहे हैं।
विस्तृत आंकड़ों के अनुसार, दिल्ली में बिकने वाले लगभग 70% हेलमेट नकली पाए गए और बेसिक इम्पैक्ट टेस्ट में बुरी तरह विफल रहे। जहां असली हेलमेट ने परीक्षण में अपना आकार बनाए रखा, वहीं नकली हेलमेट पहले ही वार में ढह गए। यह तथ्य देश में सार्वजनिक सुरक्षा की भयावह स्थिति को उजागर करता है।
समस्या का समाधान: सुरक्षा की गारंटी कैसे?
राजीव कपूर ने इस गंभीर समस्या के लिए कुछ व्यावहारिक और महत्वपूर्ण समाधान सुझाए हैं:
- असली हेलमेट की अनिवार्य आपूर्ति: हर नए दोपहिया वाहन की बिक्री के साथ दो असली ISI-प्रमाणित हेलमेट अनिवार्य रूप से दिए जाएं और इनकी कीमत मोटरसाइकिल की कीमत में ही जोड़ी जाए। उनका मानना है कि इससे यह सुनिश्चित होगा कि उपभोक्ताओं तक सबसे पहले असली और सुरक्षित हेलमेट पहुंचें।
- मोटर वाहन नियम 138F का क्रियान्वयन: केंद्र और राज्य सरकारों को मोटर वाहन नियम 138F को सख्ती से लागू करना चाहिए, जो हर दोपहिया वाहन के साथ हेलमेट को अनिवार्य बनाता है।
- नकली हेलमेट पर कड़ी कार्रवाई: नकली हेलमेट बनाने और बेचने वालों के खिलाफ तत्काल FIR दर्ज कर सख्त कानूनी कार्रवाई की जाए।
- जनजागरूकता अभियान: जनता को BIS-प्रमाणित हेलमेट्स के महत्व के बारे में जागरूक करने के लिए मीडिया और शिक्षा अभियानों को तेज किया जाए, क्योंकि कानूनी और सुरक्षित केवल यही हेलमेट हैं।
‘नो हेलमेट, नो फ्यूल’ अभियान सड़क सुरक्षा को बढ़ाने के लिए एक सराहनीय और नितांत आवश्यक कदम है। लेकिन इसके वास्तविक और प्रभावी परिणाम तभी सुनिश्चित होंगे, जब हम बाजार से नकली हेलमेट के खतरे को जड़ से खत्म कर देंगे। सुरक्षित यात्रा के लिए असली हेलमेट ही एकमात्र विकल्प है।