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वित्त और व्यापार

भारत के दम के आगे झुका अमेरिका? वित्त मंत्री ने स्वीकारा सच, अब कैसे बनेगी बात!

Kapil Mehra
Last updated: 2025/08/18 at 12:56 PM
Kapil Mehra
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5 Min Read
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दुनिया की सबसे बड़ी महाशक्ति अमेरिका और तेजी से उभरती हुई आर्थिक ताकत भारत के बीच संबंधों का एक नया अध्याय लिखा जा रहा है। ये ऐसा अध्याय है, जहां भारत अपनी शर्तों पर बात कर रहा है, अपनी नीतियों पर अडिग है, और दुनिया की कोई भी ताकत उसे अपने हितों से समझौता करने के लिए मजबूर नहीं कर सकती। हाल ही में, अमेरिकी वित्त मंत्री की कुछ टिप्पणियों ने इस बात को और पुख्ता कर दिया है, जिससे साफ संकेत मिलता है कि अब दुनिया भारत के “झुकेगा नहीं भारत” के सिद्धांत को स्वीकार करने लगी है। तो आखिर ऐसा क्या हुआ कि अमेरिका को यह सच कबूलना पड़ा, और इसके बाद अब दोनों देशों के बीच बात कैसे बनेगी?

अंतर्राष्ट्रीय कूटनीति में ऐसे पल कम ही आते हैं, जब कोई महाशक्ति किसी अन्य देश की बढ़ती प्रभुता को इस तरह से स्वीकार करे। यह सिर्फ एक बयान नहीं, बल्कि वैश्विक शक्ति संतुलन में आ रहे बड़े बदलाव का संकेत है। अमेरिकी वित्त मंत्री का यह स्वीकारोक्ति भारत की उस स्वतंत्र विदेश नीति का परिणाम है, जो किसी भी दबाव में आए बिना राष्ट्रीय हितों को सर्वोपरि रखती है। चाहे वह रूस-यूक्रेन युद्ध पर भारत का तटस्थ रुख रहा हो, या फिर अपनी ऊर्जा सुरक्षा के लिए रूस से तेल खरीदने का फैसला – भारत ने हमेशा अपने रुख पर दृढ़ता से अमल किया है। इसी दृढ़ता और आत्मविश्वास ने दुनिया को, खासकर अमेरिका को, यह एहसास दिलाया है कि भारत अब वो पुराना भारत नहीं रहा जो किसी की धुन पर नाचेगा। यह ‘झुकेगा नहीं भारत’ की नई पहचान है।

भारत की इस नई हैसियत के पीछे कई कारण हैं। पिछले कुछ वर्षों में, भारत ने अपनी अर्थव्यवस्था को मजबूत किया है, अपने रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता हासिल की है, और तकनीक व नवाचार में विश्व स्तर पर अपनी छाप छोड़ी है। इसके अलावा, भारत का विशाल बाजार, कुशल मानव संसाधन और बढ़ती भू-रणनीतिक अहमियत उसे एक ऐसी स्थिति में ले आए हैं जहाँ उसे नजरअंदाज करना किसी भी वैश्विक खिलाड़ी के लिए मुश्किल है। भारत की यह नई ताकत उसे अंतर्राष्ट्रीय मंच पर एक मजबूत आवाज देती है, जो सिर्फ अपने लिए ही नहीं, बल्कि ग्लोबल साउथ के देशों के लिए भी बोलती है। यही वो वजह है जिसने अमेरिका को यह मानने पर मजबूर किया कि भारत अब अपने रास्ते खुद बनाएगा और ‘झुकेगा नहीं भारत’ के संकल्प को निभाएगा।

अब सवाल उठता है कि अमेरिकी वित्त मंत्री द्वारा इस सच्चाई को कबूलने के बाद भारत-अमेरिका संबंध किस दिशा में जाएंगे? स्पष्ट है कि अब रिश्तों का आधार बराबरी का होगा। अमेरिका को यह समझना होगा कि भारत के साथ किसी भी बातचीत या समझौते में, भारत के हितों और उसकी संप्रभुता का पूरा सम्मान किया जाएगा। यह एक सकारात्मक बदलाव है, जो दोनों देशों के बीच विश्वास और सहयोग को और बढ़ा सकता है। अब बात दबाव से नहीं, बल्कि आपसी सम्मान और समान हितों के आधार पर बनेगी। यह एक ऐसा द्विपक्षीय संबंध होगा जहाँ दोनों देश एक-दूसरे की ताकत का सम्मान करते हुए साझा चुनौतियों का सामना करेंगे, चाहे वह आतंकवाद हो, जलवायु परिवर्तन हो या वैश्विक आर्थिक स्थिरता। यह ‘झुकेगा नहीं भारत’ की विजय है, और यह नए युग की शुरुआत है।

निष्कर्षतः, अमेरिकी वित्त मंत्री की यह स्वीकारोक्ति महज एक राजनयिक बयान नहीं, बल्कि भारत की बढ़ती वैश्विक शक्ति और उसके ‘झुकेगा नहीं भारत’ के दृढ़ संकल्प का प्रमाण है। यह दर्शाता है कि भारत अब एक प्रमुख वैश्विक शक्ति के रूप में उभरा है जो अपने राष्ट्रीय हितों को सर्वोपरि रखेगा और अंतर्राष्ट्रीय संबंधों में अपनी गरिमा बनाए रखेगा। आने वाले समय में, यह देखना दिलचस्प होगा कि कैसे यह नया समीकरण वैश्विक भू-राजनीति को प्रभावित करता है और कैसे भारत-अमेरिका संबंध एक नए, अधिक संतुलित और सम्मानजनक पथ पर आगे बढ़ते हैं। भारत का यह नया अवतार न केवल उसके लिए बल्कि पूरे एशिया के लिए एक प्रेरणा है।

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TAGGED: bilateral talks, global diplomacy, India US relations, India's geopolitical strength, US Treasury Secretary

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