पिछले कुछ समय से वैश्विक वित्तीय बाजारों में अमेरिकी डॉलर (US Dollar) लगातार कमजोर होता जा रहा है। भारतीय रुपये के साथ-साथ यूरो और जापानी येन जैसी प्रमुख मुद्राओं के मुकाबले भी इसमें गिरावट देखी गई है। यह सिर्फ एक अस्थायी उतार-चढ़ाव नहीं, बल्कि कई गहरे आर्थिक संकेतों का परिणाम है जो हमारी Global Economy को प्रभावित कर रहे हैं। बुधवार को भारतीय रुपये के मुकाबले अमेरिकी डॉलर में गिरावट आई, जहां रुपया 87.73 के इंट्राडे हाई को छू गया और बाद में डॉलर के मुकाबले 87.81 पर बंद हुआ। यह 19 अगस्त के बाद से सबसे बड़ी सिंगल-डे बढ़त थी। यूरो के मुकाबले भी डॉलर चार साल के निचले स्तर पर चला गया था, हालांकि अमेरिकी केंद्रीय बैंक फेडरल रिजर्व की बैठक से पहले इसमें थोड़ी बढ़ोतरी देखी गई। लेकिन, बड़ा सवाल यह है कि इस Dollar Fall के पीछे आखिर क्या वजहें हैं? आइए जानते हैं उन 5 प्रमुख कारणों को, जिनके चलते अमेरिकी करेंसी में यह ऐतिहासिक गिरावट दर्ज की जा रही है।
अमेरिकी डॉलर के गिरने के 5 प्रमुख कारण
अमेरिकी डॉलर इंडेक्स, जो छह प्रमुख मुद्राओं के मुकाबले अमेरिकी करेंसी की ताकत को मापता है, इस साल लगभग 11 प्रतिशत गिर चुका है। यह दर्शाता है कि निवेशक इसमें और गिरावट की उम्मीद कर रहे हैं। इसके विपरीत, यूरो और येन जैसी मुद्राएं डॉलर के मुकाबले मजबूत हो रही हैं। यह बदलती तस्वीर Global Economy के लिए क्या मायने रखती है, इसे समझना जरूरी है।
1. फेड रेट कट (Fed Rate Cut) की उम्मीदें
बाजार में इस बात की प्रबल उम्मीद है कि अमेरिकी केंद्रीय बैंक फेडरल रिजर्व जल्द ही ब्याज दरों में कटौती करेगा। इस Fed Rate Cut की उम्मीद ने डॉलर इंडेक्स पर दबाव डाला है। निवेशक मान रहे हैं कि ब्याज दरें कम होने से डॉलर की आकर्षकता घटेगी, जिससे इसकी मांग में कमी आएगी। यह अनुमान वैश्विक बाजारों में एक बड़ा बदलाव ला रहा है।
2. कमजोर अमेरिकी आर्थिक डेटा (US Data)
हाल ही में अमेरिका से आए नौकरियों के आंकड़े काफी कमजोर रहे हैं। इन कमजोर अमेरिकी डेटा (US Data) ने इस बात की उम्मीदों को और बढ़ा दिया है कि फेडरल रिजर्व को ब्याज दरों में कटौती करनी पड़ेगी। जब आर्थिक आंकड़े कमजोर होते हैं, तो वे अर्थव्यवस्था की धीमी गति का संकेत देते हैं, जिससे निवेशकों का भरोसा हिलता है और डॉलर की मांग घट जाती है। इससे ट्रेजरी यील्ड भी कम हो गई है, जिससे अमेरिकी डॉलर की मांग में और कमी आई है।
3. अमेरिकी बॉन्ड यील्ड में गिरावट
कमजोर आर्थिक संकेत और फेडरल रिजर्व द्वारा ब्याज दरें कम करने की उम्मीद से अमेरिकी बॉन्ड यील्ड में भी गिरावट आई है। बॉन्ड यील्ड का गिरना निवेशकों के लिए कम रिटर्न का संकेत देता है, जिससे वे डॉलर-आधारित संपत्तियों से दूर होने लगते हैं। इसका सीधा दबाव डॉलर इंडेक्स पर पड़ता है, जिससे US Dollar में गिरावट आती है।
4. यूरो और येन में मजबूती
यूरो और जापानी येन जैसी अन्य प्रमुख वैश्विक मुद्राएं अमेरिकी डॉलर के मुकाबले मजबूत हो रही हैं। इसका मुख्य कारण यह है कि यूरोप और जापान के केंद्रीय बैंक फेडरल रिजर्व की तुलना में कम नरम रुख अपना रहे हैं, यानी वे ब्याज दरें कम करने में उतनी जल्दबाजी नहीं दिखा रहे हैं। इस विरोधाभासी नीति से निवेशकों का रुझान यूरो और येन की ओर बढ़ रहा है, जिससे Rupee vs Dollar ही नहीं, यूरो और येन के मुकाबले भी अमेरिकी डॉलर कमजोर हो रहा है।
5. वैश्विक निवेशकों का बदलता रुझान
वैश्विक निवेशक अब इक्विटी, कमोडिटीज और उभरते बाजार की मुद्राओं में अधिक पैसा लगा रहे हैं। उनका भरोसा इन बाजारों में बढ़ रहा है, जिससे डॉलर को एक सुरक्षित ठिकाने के तौर पर देखने की प्रवृत्ति कम हो रही है। जब निवेशक सुरक्षित संपत्ति (जैसे डॉलर) से हटकर जोखिम भरी लेकिन अधिक रिटर्न वाली संपत्तियों में निवेश करते हैं, तो डॉलर की मांग कम हो जाती है। यह बदलाव Global Economy में पूंजी प्रवाह की दिशा को भी बदल रहा है और Dollar Fall को गति दे रहा है।
संक्षेप में, अमेरिकी डॉलर में आ रही यह गिरावट कई कारकों का परिणाम है जो वैश्विक अर्थव्यवस्था में एक महत्वपूर्ण बदलाव का संकेत दे रहे हैं। निवेशकों को इन प्रवृत्तियों पर बारीकी से नजर रखनी चाहिए ताकि वे अपनी वित्तीय रणनीतियों को उसी के अनुसार समायोजित कर सकें।