हाल के दिनों में भारतीय रुपया अमेरिकी डॉलर के मुकाबले अपने अब तक के सबसे निचले स्तर पर पहुंच गया है, जिसने एक नया रिकॉर्ड बना दिया है। रुपये की इस लगातार कमजोरी ने न केवल वित्तीय बाजारों में चिंता पैदा की है, बल्कि आम आदमी की जेब पर भी इसके दूरगामी परिणाम देखने को मिल सकते हैं। इस ब्लॉग पोस्ट में, हम रुपये की इस रिकॉर्ड-तोड़ गिरावट के कारणों, विशेषज्ञों की राय और भारतीय अर्थव्यवस्था व आपके दैनिक जीवन पर पड़ने वाले इसके पांच प्रमुख प्रभावों पर विस्तार से चर्चा करेंगे।
रुपये में गिरावट का नया रिकॉर्ड
भारतीय रुपये में गिरावट थमने का नाम नहीं ले रही है। अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपया 88.33 के नए रिकॉर्ड निचले स्तर पर पहुंच गया है, जो पहले 88.30 था। हालांकि, अन्य उभरते बाजारों की तुलना में इसकी स्थिति थोड़ी बेहतर बताई जा रही है, लेकिन व्यापार युद्धों के कारण आने वाले समय में इस पर दबाव बने रहने की आशंका है। विशेषज्ञों का मानना है कि रुपये की कीमत 87.65 से 88.45 के बीच रह सकती है, जिसका अर्थ है कि इसमें और गिरावट आ सकती है।
आखिर क्यों कमजोर पड़ रहा है हमारा रुपया?
रुपये की गिरावट के पीछे कई प्रमुख कारण जिम्मेदार हैं:
- अमेरिका द्वारा आयात शुल्क: अमेरिका ने भारत से आने वाले सामानों पर टैक्स लगा दिया है, जिससे देश का वित्तीय घाटा बढ़ सकता है। यह रुपये पर दबाव का एक बड़ा कारण है।
- डॉलर की बढ़ती मांग: जो लोग बाहर से चीजें मंगाते हैं (आयातकर्ता), वे लगातार डॉलर खरीद रहे हैं, जिससे बाजार में डॉलर की मांग बढ़ रही है और रुपया कमजोर हो रहा है।
- विदेशी निवेशकों की निकासी: विदेशी पोर्टफोलियो निवेशक (FPI) भारतीय डेट और इक्विटी बाजारों से अपना पैसा निकाल रहे हैं, यानी वे अपने शेयर बेच रहे हैं। इस पूंजी निकासी से भी रुपये पर दबाव बढ़ रहा है।
कब थमेगी गिरावट और कब आएगी मजबूती?
विशेषज्ञों का कहना है कि जीएसटी काउंसिल के कुछ फैसलों से रुपये को थोड़ी मदद मिल सकती है, लेकिन बाजार अभी इन बदलावों का इंतजार कर रहा है। भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के हस्तक्षेप की उम्मीद तब है जब स्पॉट रेट 88.50 के करीब पहुंचेगा। हालांकि, रुपये को पूरी तरह से मजबूत करने के लिए अमेरिका को अपने लगाए गए टैक्स वापस लेने होंगे, तभी स्थिति में बड़ा सुधार संभव होगा।
आपकी जेब पर क्या होगा असर? जानें रुपये की कमजोरी के 5 बड़े प्रभाव
रुपये के कमजोर होने से बाजार और आम लोगों पर कई तरह से बुरा असर पड़ता है। आइए समझते हैं इसके 5 प्रमुख प्रभाव:
- महंगाई बढ़ना: भारत अपनी जरूरत का ज्यादातर कच्चा तेल बाहर से मंगाता है। रुपया कमजोर होने से कच्चा तेल महंगा हो जाएगा, जिससे पेट्रोल और डीजल के दाम बढ़ेंगे। इसके परिणामस्वरूप ट्रांसपोर्टेशन और अन्य चीजों की कीमतें भी बढ़ जाएंगी, जिससे महंगाई में इजाफा होगा और बाजार में अनिश्चितता का माहौल बनेगा।
- आयातित सामान महंगा होना: जो चीजें हम विदेशों से मंगाते हैं, जैसे इलेक्ट्रॉनिक्स गैजेट्स, मशीनें और कई तरह का कच्चा माल, वे महंगी हो जाएंगी। इससे कंपनियों का मुनाफा घट सकता है और आम लोगों की खरीदने की क्षमता भी प्रभावित होगी।
- व्यापार घाटा बढ़ना: रुपये के कमजोर होने से आयात महंगा हो जाएगा। अगर हम बाहर से चीजें मंगाना कम नहीं करते हैं, तो हमारा व्यापार घाटा बढ़ जाएगा। व्यापार घाटा तब होता है जब हम जितना सामान बाहर भेजते हैं, उससे ज्यादा मंगाते हैं। यह स्थिति रुपये को और कमजोर कर सकती है।
- विदेशी निवेशकों द्वारा पैसा निकालना: जब रुपया गिरता है, तो विदेशी निवेशक अपने निवेश पर नुकसान के डर से शेयर बाजार और बॉन्ड मार्केट से अपना पैसा निकालना शुरू कर देते हैं। इससे रुपये और भारतीय वित्तीय बाजारों, दोनों पर अतिरिक्त दबाव पड़ता है।
- कंपनियों पर कर्ज का बोझ बढ़ना: जिन भारतीय कंपनियों ने विदेशी मुद्रा में कर्ज लिया है, रुपये के कमजोर होने पर उन्हें अब उस कर्ज को चुकाने के लिए ज्यादा रुपये देने होंगे। इससे उनकी आर्थिक स्थिति खराब हो सकती है और उनके शेयरों की कीमतें भी गिर सकती हैं।
रुपये की कमजोरी एक जटिल आर्थिक मुद्दा है जिसके कई आयाम हैं। इस स्थिति पर नजर रखना और इसके संभावित प्रभावों को समझना देश के नागरिक के रूप में महत्वपूर्ण है।