हाल के वर्षों में बच्चों के स्वास्थ्य को लेकर एक चिंताजनक बदलाव सामने आया है। कभी अनुवांशिक मानी जाने वाली दमा (अस्थमा) की बीमारी अब तेजी से बदलती जीवनशैली और पर्यावरणीय कारकों के कारण बच्चों में पांव पसार रही है। यह स्थिति न केवल स्वास्थ्य विशेषज्ञों के लिए, बल्कि अभिभावकों के लिए भी एक बड़ी चुनौती बन गई है।
बच्चों में दमा-अस्थमा क्यों बढ़ रहा है?
सरकारी अस्पतालों से मिले आंकड़ों के अनुसार, पिछले 5 सालों में बच्चों में दमा-अस्थमा के मामलों में 25% से अधिक की वृद्धि दर्ज की गई है। बाल रोग विभाग में रोजाना दर्जनों बच्चे सांस फूलने, खांसी और अस्थमा की समस्या की शिकायत लेकर पहुंच रहे हैं। 5 से 15 साल की उम्र के बच्चों में यह समस्या सबसे ज्यादा देखी जा रही है। इसके प्रमुख कारण इस प्रकार हैं:
- फास्ट फूड और मोटापा: फास्ट फूड, जंक फूड और कोल्ड ड्रिंक का अत्यधिक सेवन बच्चों के वजन को असामान्य रूप से बढ़ा रहा है। यह `obesity in children` फेफड़ों की क्षमता को कम करता है और सांस लेने में दिक्कत पैदा करता है।
- मैदानी खेलों का अभाव: मोबाइल और गैजेट्स पर अधिक समय बिताने के कारण बच्चे मैदानी खेलकूद से दूर हो रहे हैं, जिससे उनकी शारीरिक क्षमता प्रभावित हो रही है और विभिन्न `lifestyle diseases` को बढ़ावा मिल रहा है।
- बढ़ता प्रदूषण: धूल, धुआं और `air pollution` बच्चों के फेफड़ों पर सीधा असर डाल रहे हैं। लगातार निर्माण कार्य और यातायात जाम के चलते शहरों में वायु की गुणवत्ता खराब हो चुकी है, जो दमा के हमलों को ट्रिगर कर रही है।
- नींद की कमी: देर रात तक मोबाइल और टीवी देखने की आदत, पढ़ाई का दबाव और समय पर न सो पाने से बच्चों की नींद कम हो रही है। नींद की कमी से शरीर की प्रतिरोधक क्षमता घटती है और `child asthma` के अटैक की संभावना बढ़ती है।
यह स्थिति कितनी चिंताजनक है?
विशेषज्ञों के अनुसार, अब 100 में से लगभग 7 बच्चों में दमा की शिकायत पाई जा रही है। पहले जहां इसे मुख्य रूप से अनुवांशिक बीमारी माना जाता था, वहीं अब जीवनशैली और पर्यावरणीय बदलाव इसके बड़े कारक साबित हो रहे हैं। यह सिर्फ एक आंकड़ा नहीं, बल्कि बच्चों के भविष्य के स्वास्थ्य से जुड़ा एक गंभीर संकेत है। अगर समय पर ध्यान न दिया जाए, तो यह समस्या आजीवन बनी रह सकती है।
बचाव और समाधान: माता-पिता क्या करें?
बच्चों को इस गंभीर बीमारी से बचाने और उनके समग्र `child health` को बेहतर बनाने के लिए माता-पिता को कुछ महत्वपूर्ण कदम उठाने होंगे:
- नियमित व्यायाम और मैदानी खेल: बच्चों को नियमित व्यायाम और मैदानी खेलों की आदत लगाना जरूरी है। इससे उनकी शारीरिक क्षमता बढ़ती है और फेफड़े मजबूत होते हैं।
- स्वस्थ आहार: तैलीय, जंक फूड और कोल्ड ड्रिंक्स से बच्चों को दूर रखें। उनके आहार में ताजे फल, सब्जियां और पौष्टिक भोजन शामिल करें।
- प्रदूषण से बचाव: छोटे बच्चों को प्रदूषण से हमेशा दूर रखना जरूरी है। अत्यधिक प्रदूषित क्षेत्रों में जाने से बचें। आवश्यकता पड़ने पर बच्चों के कमरे में एयर-प्यूरीफायर का उपयोग लाभकारी हो सकता है।
- पर्याप्त नींद: बच्चों को कम से कम 8-9 घंटे की गुणवत्तापूर्ण नींद मिले, यह सुनिश्चित करें।
डॉ. अविनाश गावंडे, बाल रोग विशेषज्ञ व चिकित्सा अधीक्षक मेडिकल, बताते हैं कि अस्थमा केवल अनुवांशिक कारणों से नहीं, बल्कि मोटापा और प्रदूषण के कारण तेजी से बढ़ रहा है। उनका कहना है कि माता-पिता को ध्यान रखना होगा कि बच्चे का वजन नियंत्रित रहे, उसे समय पर नींद मिले और प्रदूषण वाले क्षेत्रों से बचाया जाए। समय पर इलाज न मिलने पर यह आजीवन समस्या बन सकती है, इसलिए शुरुआती लक्षणों पर विशेष ध्यान देना आवश्यक है।
बच्चों को स्वस्थ भविष्य देने के लिए हमें उनकी जीवनशैली और पर्यावरण पर सक्रिय रूप से ध्यान देना होगा।