बॉलीवुड की ‘चांदनी’ श्रीदेवी का 24 फरवरी 2018 को दुबई में अचानक निधन हो जाना, पूरे देश और फिल्म इंडस्ट्री के लिए एक गहरा सदमा था। सिर्फ 54 साल की उम्र में उनका यूं चले जाना कई सवालों और ढेर सारे खालीपन के साथ आया। लेकिन इस दुख का सबसे गहरा असर अगर किसी पर पड़ा, तो वह थीं उनकी दो बेटियां, जाह्नवी और खुशी कपूर। मां की छत्रछाया खोने के साथ ही इन दोनों ने न सिर्फ निजी तौर पर एक असहनीय दुख झेला, बल्कि सार्वजनिक जीवन में भी उन्हें लगातार कैमरों की चुभती निगाहों और लोगों की निर्मम आलोचना का सामना करना पड़ा। हाल ही में जाह्नवी कपूर ने इस बेहद मुश्किल दौर पर खुलकर बात की है, जिससे पता चलता है कि एक स्टार किड होने का मतलब हमेशा चमक-दमक भरा नहीं होता, बल्कि कभी-कभी यह एक बोझ भी बन जाता है।
निजी दुख, सार्वजनिक नुमाइश: जब गम भी बन गया एंटरटेनमेंट
एक प्रतिष्ठित मैगज़ीन को दिए इंटरव्यू में जाह्नवी कपूर ने अपने दिल का दर्द बयां करते हुए बताया कि किस तरह श्रीदेवी के निधन के बाद उन्हें अपनी मां के गम को भी निजी तौर पर जीने का अधिकार नहीं मिला। उन्होंने कहा, “मीडिया मुझे लगातार फॉलो करता था। अगर मैं अपनी फिल्म को प्रमोट करने के लिए मुस्कुरा देती, तो कहा जाता कि ‘देखो, मां के जाने के बाद भी यह ठीक है।’ और अगर मैं चुप रहती, तो मुझे ठंडी और बेरहम कहा जाता। सोचिए, मां को खोने के बाद भी यह सब लोगों के लिए एक तरह का एंटरटेनमेंट बन गया था।” यह बात उन तमाम हस्तियों के दर्द को बयां करती है, जिन्हें अपने निजी पलों में भी लाखों निगाहों का सामना करना पड़ता है और उनके हर हाव-भाव को परखा जाता है।
पैपराजी का बढ़ता दबाव और मानवीयता पर सवाल
जाह्नवी ने आगे बताया कि बचपन में पैपराजी का सामना करना उनके लिए एक आम बात थी, लेकिन मां के निधन के बाद इसने उन्हें भीतर से तोड़ दिया। उन्होंने भावुक होकर कहा, “जो नुकसान हमने सहा, उसे कोई समझ नहीं सकता। मां को खोना एक ऐसा दर्द था, जो असहनीय था, लेकिन उसके बाद जो कुछ झेलना पड़ा, उसने मुझे इंसानियत को लेकर बहुत नेगेटिव बना दिया।” जाह्नवी का कहना था कि उन्होंने और खुशी ने कभी अपनी कमजोरी नहीं दिखाई और शायद यही वजह थी कि लोगों ने उन पर ‘कीचड़ फेंकना’ शुरू कर दिया, मानो वे इंसान ही न हों। यह घटना सार्वजनिक जीवन में मौजूद संवेदनहीनता और empathy की कमी को उजागर करती है, जहां लोग अक्सर सितारों को सिर्फ मनोरंजन का साधन समझते हैं, उनके मानवीय पहलुओं को भूल जाते हैं।
‘धड़क’ से पहले का सदमा और बहनों का अटूट बंधन
श्रीदेवी का निधन उस समय हुआ था जब उनकी बड़ी बेटी जाह्नवी का बॉलीवुड डेब्यू फिल्म ‘धड़क’ से होने वाला था। उस फिल्म की रिलीज से कुछ ही महीने पहले मां का यूं चले जाना जाह्नवी के लिए सबसे बड़ा व्यक्तिगत सदमा बन गया था, जिसने उनके करियर की शुरुआत को एक अप्रत्याशित और भावनात्मक मोड़ दे दिया। हालांकि, इस मुश्किल घड़ी में दोनों बहनों – जाह्नवी और खुशी ने एक दूसरे को संभाला और एक दूसरे की हिम्मत बनीं। उन्होंने सार्वजनिक आलोचनाओं और निजी दुख के बावजूद खुद को मजबूत रखा। आज दोनों ही बहनें अपने-अपने करियर में आगे बढ़ रही हैं और अपनी मां की विरासत को सम्मानपूर्वक आगे ले जा रही हैं। उनकी कहानी हमें यह सिखाती है कि चाहे कितनी भी मुश्किलें आएं, परिवार का साथ और अंदरूनी ताकत ही सबसे बड़ी पूंजी होती है।