इंदौर की राजनीति में इन दिनों एक युवा नाम चर्चा का विषय बना हुआ है – महापौर पुष्यमित्र भार्गव के पुत्र संघमित्र। हाल ही में एक वाद-विवाद प्रतियोगिता में केंद्र सरकार की नीतियों पर उनकी बेबाक टिप्पणी ने राजनीतिक गलियारों में हलचल मचा दी है। जहां एक ओर विपक्ष इसे सरकार की पोल खोलने का मौका मानकर भुना रहा है, वहीं इस युवा आवाज को निशाना बनाए जाने पर भाजपा के वरिष्ठ नेता कैलाश विजयवर्गीय ने कड़ा ऐतराज जताया है। उन्होंने इस पूरी घटना को ‘निंदनीय और अमानवीय’ बताया है, जबकि मुख्यमंत्री मोहन यादव ने भी संघमित्र की वाकपटुता की सराहना की थी।
वाद-विवाद प्रतियोगिता और राजनीतिक तूफान
संघमित्र की टिप्पणियां 4 सितंबर को आयोजित एक वाद-विवाद प्रतियोगिता के दौरान आई थीं। विपक्ष की भूमिका निभाते हुए उन्होंने मोदी सरकार की रेल नीतियों पर तीखा कटाक्ष किया। उन्होंने कहा था कि ‘वेटिंग लिस्ट का आलम ऐसा है कि 50 लाख से ज़्यादा लोग हर साल टिकट लेने के बाद भी सफर नहीं कर पाते हैं।’ बुलेट ट्रेन के वादे को लेकर भी उन्होंने निशाना साधा, कहा कि ‘2025 आ गया है, बुलेट ट्रेन तो नहीं लेकिन वादाखिलाफी की रफ़्तार ज़रूर दौड़ रही है।’ उनकी इन बातों को विपक्षी दलों ने तुरंत लपक लिया और सोशल मीडिया पर इस तरह प्रचारित किया जाने लगा, जैसे यह सरकार विरोधी कोई बड़ा बयान हो।
कैलाश विजयवर्गीय का अमानवीय रवैये पर पलटवार
इस पूरे घटनाक्रम पर कैबिनेट मंत्री और भाजपा के दिग्गज नेता कैलाश विजयवर्गीय ने गहरी नाराज़गी व्यक्त की है। उन्होंने इसे ‘निंदनीय और अमानवीय’ बताते हुए महापौर पुत्र का बचाव किया। विजयवर्गीय ने सोशल मीडिया पर अपनी प्रतिक्रिया में लिखा, ‘आज हृदय व्यथित है, इंदौर महापौर पुष्यमित्र जी के सुपुत्र संघमित्र को वाद-विवाद प्रतियोगिता के एक सामान्य वक्तव्य पर राजनीतिक मोहरा बनाना न केवल निंदनीय है, बल्कि अमानवीय भी प्रतीत होता है।’ उन्होंने स्पष्ट किया कि वाद-विवाद प्रतियोगिता का मूल सिद्धांत ही पक्ष और विपक्ष में तर्क प्रस्तुत करना है, और संघमित्र ने केवल अपनी वाक्-कला का प्रदर्शन करते हुए विपक्ष की भूमिका निभाई थी।
विजयवर्गीय ने इसे कला की अभिव्यक्ति से जोड़ा और प्रसिद्ध अभिनेता आशुतोष राणा का उदाहरण दिया, जो इंदौर में आयोजित ‘हमारे राम’ नाटक में रावण का अभिनय कर रहे हैं। उन्होंने सवाल उठाया, ‘क्या इससे वे सचमुच रावण हो गए? नहीं, यह तो केवल कला की अभिव्यक्ति है।’ उनका कहना था कि संघमित्र को केवल इसलिए ट्रोल किया जा रहा है क्योंकि वे इंदौर के मेयर के पुत्र हैं, और यह एक प्रतिभाशाली युवा के आत्मविश्वास को तोड़ने का प्रयास है।
जब राजनीति बच्चों की मासूम प्रतिभा पर भारी पड़े
विजयवर्गीय ने प्रदेश की राजनीति के इस स्तर तक गिरने पर चिंता व्यक्त की। उन्होंने कहा, ‘कितना खेदजनक है कि राजनीति इतनी नीचे गिर जाए कि बच्चों की मासूम प्रतिभा भी उसकी भेंट चढ़ जाए। मध्यप्रदेश की राजनीति का इस स्तर तक गिरना वास्तव में चिंताजनक है।’ उन्होंने यह भी कहा कि यह व्यवहार न केवल अन्यायपूर्ण है बल्कि हमारे समाज की सोच पर भी गहरा प्रश्नचिह्न खड़ा करता है, जो एक उज्ज्वल भविष्य की ओर अग्रसर युवा की प्रतिभा और आत्मविश्वास को तोड़ने का प्रयास है।
मुख्यमंत्री मोहन यादव ने सराही वाकपटुता
दिलचस्प बात यह है कि प्रतियोगिता के बाद खुद मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने संघमित्र की वाकपटुता की जमकर तारीफ की थी। उन्होंने कहा था, ‘अपने भतीजे के लिए भी मैं जोरदार तालियां बजवाना चाहूंगा… उसने जिस बेबाकी से अपनी बात रखी। पक्ष हो या विपक्ष, उसको जो जवाबदारी मिली, वही तो बोलेगा।’ मुख्यमंत्री ने वाद-विवाद प्रतियोगिता को भारतीय संस्कृति में ‘शास्त्रार्थ’ की प्राचीन विधा से जोड़ा और कहा कि इससे नई पीढ़ी के अच्छे वक्ता सामने आते हैं। कैलाश विजयवर्गीय ने मुख्यमंत्री के इस कदम की सराहना करते हुए कहा कि ‘उनका यह कदम न केवल प्रोत्साहन है, बल्कि यह भी संदेश देता है कि सच्ची प्रतिभा को राजनीति के तराजू में नहीं तोला जाना चाहिए। मैं हृदय से माननीय मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव जी का आभारी हूं, जिन्होंने संघमित्र की वाकपटुता को न सिर्फ सराहा बल्कि कुछ सुझाव भी दिए।’
निष्कर्ष
यह पूरा वाकया एक बार फिर इस बहस को जन्म देता है कि क्या वाद-विवाद प्रतियोगिताओं में व्यक्त की गई राय को सीधे-सीधे राजनीतिक बयान के तौर पर देखा जाना चाहिए? या हमें कला और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को राजनीति के संकीर्ण दायरे से ऊपर रखना चाहिए? संघमित्र का मामला दिखाता है कि कैसे एक युवा की प्रतिभा को अनावश्यक रूप से राजनीतिक रंग देकर उसके मनोबल को तोड़ने की कोशिश की जा सकती है। यह महत्वपूर्ण है कि हम अभिव्यक्ति की इस आज़ादी का सम्मान करें और युवाओं को अपनी राय रखने के लिए प्रोत्साहित करें, बजाय इसके कि उन्हें राजनीतिक मोहरा बनाया जाए।