उत्तर प्रदेश की राजनीति में कब क्या हो जाए, कहना मुश्किल है। पिछले साल पार्टी से हटाए गए आकाश आनंद को बहुजन समाज पार्टी (बसपा) सुप्रीमो मायावती ने एक बार फिर बड़ी जिम्मेदारी सौंप दी है। आकाश आनंद को पार्टी का राष्ट्रीय संयोजक नियुक्त किया गया है, जिसके बाद से राजनीतिक गलियारों में तरह-तरह की चर्चाएं तेज़ हो गई हैं। क्या यह 2027 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव और अन्य राज्यों में पार्टी को मज़बूती देने की बड़ी रणनीति है, या इसके पीछे कुछ और गहरी कहानी है?
मायावती का चौंकाने वाला दांव: आकाश आनंद की वापसी
बसपा सुप्रीमो और पूर्व मुख्यमंत्री मायावती ने संगठन में बड़ा बदलाव करते हुए अपने भतीजे आकाश आनंद को पार्टी का राष्ट्रीय संयोजक नियुक्त कर दिया है। इस फैसले के बाद आकाश आनंद अब पार्टी में नंबर दो की पोजीशन पर पहुंच गए हैं और सीधे मायावती को रिपोर्ट करेंगे। दिलचस्प बात यह है कि इन्हीं आकाश आनंद को मायावती ने कुछ महीने पहले पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया था, लेकिन अब उन्हें इतनी बड़ी जिम्मेदारी सौंपने के बाद कई सवाल खड़े हो गए हैं। राजनीतिक विश्लेषक इसे 2027 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव और बिहार समेत अन्य राज्यों में पार्टी को मजबूती देने की बड़ी रणनीति के तौर पर देख रहे हैं। उनका मानना है कि आकाश आनंद बसपा में नए दौर के चेहरे बन गए हैं और मायावती उनके भरोसे युवाओं और पार्टी से भटके हुए नेताओं को जोड़ना चाहती हैं, ताकि 2027 विधानसभा चुनाव में बसपा 2007 के नतीजों को दोहरा सके।
‘राष्ट्रीय संयोजक’ का नया पद: उत्तराधिकारी के संकेत?
दरअसल, बसपा में राष्ट्रीय संयोजक का पद पहली बार बनाया गया है और यह खास तौर पर आकाश आनंद के लिए ही तैयार किया गया है। इससे साफ संकेत मिलते हैं कि मायावती उन्हें भविष्य का नेता बनाने की दिशा में बढ़ रही हैं। इस कदम से मायावती ने यह संदेश भी दिया है कि बसपा में शीर्ष नेतृत्व उनके परिवार से बाहर नहीं जाएगा। साथ ही, आकाश आनंद की नियुक्ति दरअसल युवाओं को साधने की रणनीति है। मायावती चाहती हैं कि आकाश के जरिए दलित और पढ़े-लिखे युवा वर्ग फिर से बसपा से जुड़ें, खासकर ऐसे दौर में जब भीम आर्मी प्रमुख एवं नगीना सांसद चंद्रशेखर आजाद युवाओं में तेजी से लोकप्रिय हो रहे हैं और बसपा के परंपरागत वोट बैंक को प्रभावित कर रहे हैं।
वरिष्ठ पत्रकारों की राय: क्या यह स्थायी बदलाव है?
मायावती के इस कदम को लेकर यूपी के वरिष्ठ पत्रकारों की राय बंटी हुई है। सीनियर जर्नलिस्ट सुरेश बहादुर सिंह का कहना है कि मायावती अपनी खोई हुई राजनीतिक जमीन को वापस पाने के लिए बहुत व्याकुल हैं, लेकिन जब उन्हें लगता है कि कोई पार्टी का नेता मजबूत होता जा रहा है तो उसे साइडलाइन कर देती हैं। उनके अनुसार, मायावती इस तरह की कार्रवाई करके यह बताना चाहती हैं कि बहुजन समाज पार्टी में इकलौती नेता मायावती स्वयं हैं। उन्होंने यह भी कहा कि आकाश आनंद कब तक इस पद पर बने रहेंगे, इसके बारे में कुछ नहीं कहा जा सकता। किसी भी समय उन्हें इस जिम्मेदारी से हटाया या आगे बढ़ाया जा सकता है।
युवाओं को साधने की रणनीति और चंद्रशेखर आज़ाद का ‘डेंट’
वरिष्ठ पत्रकार की मानें तो बसपा आकाश आनंद के जरिए उन युवाओं को जोड़ना चाहती है, जो दलित युवा अन्य दलों में चले गए हैं या जो किसी कारण से बसपा से भटक गए थे। जिस तरीके से चंद्रशेखर आजाद युवाओं के प्रति लोकप्रिय हैं और लगातार बसपा के वोट बैंक में ‘डेंट’ लगाने का काम कर रहे हैं, उस चुनौती को आकाश के जरिए रोकने और युवाओं को अपने पाले में लाने के लिए उन्हें यह बड़ी जिम्मेदारी दी गई है। वहीं, वरिष्ठ पत्रकार राजकुमार सिंह मानते हैं कि आकाश आनंद ही मायावती के उत्तराधिकारी होंगे, यह अब तय हो गया है।
आकाश आनंद का राजनीतिक सफर: एक नज़र
आकाश आनंद, मायावती के छोटे भाई आनंद कुमार के बेटे हैं। उन्होंने लंदन के प्लायमाउथ विश्वविद्यालय से एमबीए किया है और 2016 में सहारनपुर से राजनीति की शुरुआत की थी। 2019 में उन्हें राष्ट्रीय कोऑर्डिनेटर बनाया गया था और दिसंबर 2023 में मायावती ने उन्हें अपना उत्तराधिकारी घोषित किया था। हालांकि, विवादित बयानों और राजनीतिक परिपक्वता की कमी के चलते उन्हें 2024 में पद से हटा दिया गया था। मई 2025 में उनकी वापसी हुई और अब उन्हें राष्ट्रीय संयोजक जैसा अहम पद मिला है।
2027 की चुनौती और बसपा का भविष्य
लोकसभा चुनाव 2024 में बसपा का प्रदर्शन बेहद निराशाजनक रहा है। पार्टी उत्तर प्रदेश में एक भी सीट नहीं जीत पाई और उसका वोट शेयर 19.4% से घटकर 9.3% पर आ गया। इसके बाद मायावती ने संगठन में बड़े बदलाव किए और अब बिहार में भी अकेले चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया है। फिलहाल सबकी निगाहें आकाश आनंद पर टिकी हैं कि क्या वह मायावती के भरोसे पर खरे उतरते हुए 2027 में बसपा को फिर से अपनी पुरानी ताकत दिला पाएंगे या नहीं। यह समय ही बताएगा कि मायावती का यह दांव बसपा के लिए कितना फायदेमंद साबित होता है।