अजमेर संभाग से स्वास्थ्य मोर्चे पर मिली-जुली खबरें सामने आई हैं। एक ओर जहां डेंगू और मलेरिया जैसी जानलेवा बीमारियों के मामलों में पिछले वर्ष की तुलना में काफी कमी दर्ज की गई है, वहीं दूसरी ओर सर्दी, जुकाम, बुखार, उल्टी और दस्त जैसी सामान्य मौसमी बीमारियों के मरीजों की संख्या में अप्रत्याशित वृद्धि देखी गई है। यह स्थिति कई सवाल खड़े करती है कि आखिर क्यों कुछ बीमारियों में राहत मिली है, जबकि अन्य बीमारियों ने लोगों को परेशान करना जारी रखा है। आइए इस विस्तृत रिपोर्ट में अजमेर संभाग की स्वास्थ्य स्थिति का विश्लेषण करते हैं।
इस साल क्यों घटे डेंगू-मलेरिया के मामले?
चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग में संयुक्त निदेशक डॉ. संपत सिंह जोधा ने बताया कि प्रदेश में इस बार शुरुआत से ही बारिश का दौर लगातार जारी है। डेंगू के मच्छर साफ पानी में अंडे देते और प्रजनन करते हैं। लगातार हो रही बारिश के कारण इन मच्छरों के अंडों को पनपने का मौका नहीं मिल पा रहा है, जिससे डेंगू और मलेरिया का खतरा काफी कम हो गया है। हालांकि, उन्होंने यह भी चेताया कि जब बारिश पूरी तरह थम जाएगी और जलभराव की स्थिति बनेगी, उसके बाद डेंगू और मलेरिया का प्रकोप बढ़ सकता है। विभाग इस स्थिति से निपटने के लिए पूरी तरह मुस्तैद है और सभी ब्लॉक चिकित्सा अधिकारियों को पर्याप्त दवाइयां रखने के निर्देश दिए गए हैं।
डेंगू के आंकड़े: एक तुलनात्मक विश्लेषण
अजमेर संभाग के 6 जिलों में डेंगू के आंकड़ों पर गौर करें तो स्थिति काफी उत्साहजनक है:
- वर्ष 2024 में कुल 165 डेंगू के मरीज थे, जबकि इस वर्ष अब तक केवल 36 मरीज सामने आए हैं।
- अजमेर में पिछले वर्ष 85 मरीज थे, जो इस वर्ष घटकर 17 रह गए हैं।
- ब्यावर में पिछले वर्ष 11 और इस बार 2 मरीज।
- भीलवाड़ा में पिछले वर्ष 5 और इस वर्ष 1 मरीज।
- नागौर में पिछले वर्ष 10 मरीज थे, लेकिन इस बार एक भी मरीज सामने नहीं आया है।
- डीडवाना कुचामन जिले में पिछले वर्ष 17 और इस वर्ष 5 मरीज।
- टोंक में पिछले वर्ष 37 और इस वर्ष 11 मरीज।
मलेरिया की स्थिति: कहां मिली सबसे ज्यादा राहत?
मलेरिया के मामलों में भी अजमेर संभाग को बड़ी राहत मिली है:
- वर्ष 2024 में मलेरिया के कुल 27 मरीज सामने आए थे, जो इस वर्ष घटकर केवल 3 रह गए हैं।
- अजमेर में पिछले वर्ष 6 मरीज थे, जबकि इस बार 2 मरीज सामने आए हैं।
- ब्यावर में पिछले साल 2 मरीज थे, इस बार अभी तक एक भी नहीं।
- भीलवाड़ा में पिछले वर्ष 9 मरीज, इस बार 1 मरीज।
- नागौर में पिछले वर्ष 3 मरीज, इस बार एक भी नहीं।
- डीडवाना कुचामन जिले में पिछले वर्ष 7 मरीज, इस बार एक भी नहीं।
- टोंक में मलेरिया गत वर्ष भी नहीं था और इस बार भी शून्य है।
स्वाइन फ्लू (H1N1) में भी गिरावट
स्वाइन फ्लू के मामलों में भी कमी दर्ज की गई है:
- अजमेर संभाग में पिछले वर्ष 43 स्वाइन फ्लू के मरीज थे, इस बार यह संख्या घटकर 2 रह गई है।
- ब्यावर और कुचामन डीडवाना जिले में पिछले साल और इस साल दोनों में शून्य मामले रहे हैं।
- भीलवाड़ा जिले में पिछले वर्ष तीन मरीज थे, इस बार एक भी नहीं।
- नागौर जिले में पिछले साल 5 मामले थे, इस बार एक भी नहीं।
- टोंक जिले में पिछले वर्ष 11 मरीज थे और इस वर्ष एक मरीज सामने आया है।
चिकनगुनिया के मरीजों में चिंताजनक उछाल
जहां डेंगू और मलेरिया में कमी आई है, वहीं चिकनगुनिया के मामले बढ़ना चिंता का विषय है:
- वर्ष 2024 में चिकनगुनिया के कुल 5 मरीज थे, जबकि इस वर्ष यह संख्या बढ़कर 18 हो चुकी है।
- अजमेर में पिछले वर्ष एक भी मरीज नहीं था, जबकि इस बार 5 मरीज सामने आ चुके हैं।
- ब्यावर में पिछले साल और इस बार दोनों में शून्य मामले।
- भीलवाड़ा जिले में पिछले वर्ष दो मरीज थे, इस बार एक भी नहीं।
- नागौर में पिछले वर्ष एक मरीज था, इस बार एक भी नहीं।
- कुचामन डीडवाना जिले में पिछले वर्ष एक मरीज था, इस बार पांच मरीज सामने आ चुके हैं।
- टोंक जिले में पिछले वर्ष एक मरीज था, इस बार 6 मरीज अभी तक सामने आ चुके हैं।
आगे की राह: बचाव और जागरूकता
डॉ. संपत सिंह जोधा ने सितंबर में बारिश थमने के बाद जलभराव की स्थिति में डेंगू और मलेरिया के फैलने की संभावना को दोहराया। विभाग इस स्थिति से निपटने के लिए लार्वा और एडल्ट कंट्रोल गतिविधियों में जुटा है। इसके साथ ही, लोगों को जागरूक करने पर भी जोर दिया जा रहा है कि वे अपने घरों और आसपास के इलाकों में पानी जमा न होने दें। टायर, डब्बे, कूलर और अन्य जगहों पर जमा साफ पानी को समय रहते हटा देना चाहिए। स्थानीय निकायों के सहयोग से फॉगिंग भी करवाई जा रही है, जिसके लिए आवश्यक सामग्री विभाग द्वारा उपलब्ध करवाई जा रही है।
यह रिपोर्ट दर्शाती है कि प्रकृति का चक्र कैसे मानव स्वास्थ्य को प्रभावित करता है। जहां लगातार बारिश ने कुछ बीमारियों पर लगाम लगाई है, वहीं जलभराव की संभावित स्थिति और अन्य मौसमी बदलावों के कारण अन्य बीमारियों का खतरा बना हुआ है। ऐसे में जनभागीदारी और स्वास्थ्य विभाग की सक्रियता ही इन चुनौतियों से निपटने का एकमात्र मार्ग है।