उत्तर प्रदेश की राजनीति में इन दिनों निषाद पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष और योगी सरकार में कैबिनेट मंत्री संजय निषाद एक बार फिर चर्चा का विषय बने हुए हैं। हाल ही में उनके एक बयान ने सूबे का सियासी पारा बढ़ा दिया था, जहां उन्होंने बीजेपी गठबंधन को लेकर तीखे तेवर दिखाए थे। इन चर्चाओं के बीच, संजय निषाद की उपमुख्यमंत्री बृजेश पाठक से हुई एक अहम मुलाकात ने राजनीतिक गलियारों में हलचल तेज कर दी है। आखिर क्या हैं इस बैठक के मायने और क्या यह आगामी विधानसभा चुनावों से पहले सीट बंटवारे को लेकर दबाव बनाने की रणनीति है?
गठबंधन को लेकर संजय निषाद का चौंकाने वाला बयान
दरअसल, कुछ दिनों पहले कैबिनेट मंत्री संजय निषाद ने गोरखपुर दौरे के दौरान एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में बीजेपी गठबंधन को लेकर बड़ा बयान दिया था। उन्होंने साफ तौर पर कहा था कि अगर बीजेपी को लगता है कि उन्हें सहयोगी दलों से फायदा नहीं मिल रहा है, तो वे गठबंधन तोड़ सकते हैं। उन्होंने यहां तक कहा कि निषाद पार्टी इसके लिए पूरी तरह तैयार है। संजय निषाद ने यह भी रेखांकित किया था कि बीजेपी की जीत केवल अकेले की नहीं, बल्कि सहयोगी दलों की साझा जीत है। उनके इस बयान के बाद से प्रदेश में राजनीतिक अटकलों का बाजार गर्म हो गया था।
बृजेश पाठक संग ‘शिष्टाचार भेंट’ और उसके मायने
बयानबाजी के इस दौर के बीच, संजय निषाद ने लखनऊ में उपमुख्यमंत्री बृजेश पाठक से मुलाकात की। स्वयं संजय निषाद, बृजेश पाठक के आवास पर उनसे मिलने पहुंचे थे। इस मुलाकात के बाद दोनों नेताओं ने अपने सोशल मीडिया अकाउंट्स पर तस्वीरें साझा करते हुए इसे ‘शिष्टाचार भेंट’ बताया। संजय निषाद ने पोस्ट में कहा कि इस दौरान प्रदेश की समृद्धि, विकास और जनहित से जुड़े कई महत्वपूर्ण विषयों पर व्यापक चर्चा हुई। उन्होंने यह भी जोड़ा कि नया उत्तर प्रदेश प्रगति पथ पर तेजी से आगे बढ़ रहा है और संयुक्त प्रयासों से प्रदेश को हर क्षेत्र में नंबर एक पर लाना है। बृजेश पाठक ने भी लगभग इसी तरह का पोस्ट किया।
क्या यह आगामी चुनावों के लिए दबाव की राजनीति है?
हालांकि, राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह मुलाकात महज एक शिष्टाचार भेंट से कहीं अधिक है। उनके अनुसार, संजय निषाद का यह बयान और उसके तुरंत बाद उपमुख्यमंत्री से मुलाकात, बीजेपी पर दबाव बनाने की रणनीति का हिस्सा हो सकती है। आगामी विधानसभा चुनावों (2027) में मनमुताबिक सीटें हासिल करने के लिए सहयोगी दल अक्सर इस तरह की ‘दबाव की राजनीति’ करते हैं। राजनीतिक गलियारों में इस बात की भी चर्चा है कि बीजेपी के कुछ सहयोगी दल लगातार अपनी भूमिका और हिस्सेदारी को लेकर असंतोष व्यक्त करते रहे हैं। ऐसे में संजय निषाद का यह कदम गठबंधन में अपनी स्थिति को मजबूत करने और आगामी चुनावों में बेहतर ‘डील’ पाने की कोशिश के रूप में देखा जा रहा है। आने वाले समय में यह देखना दिलचस्प होगा कि इस मुलाकात और बयानबाजी का उत्तर प्रदेश की गठबंधन राजनीति पर क्या असर पड़ता है।