आज के दौर में अपना घर खरीदना हर किसी का सपना होता है, लेकिन आसमान छूती रियल एस्टेट की कीमतें और होम लोन की भारी-भरकम EMI इसे अक्सर मुश्किल बना देती है। ऐसे में कई भाई-बहन मिलकर घर खरीदने का विकल्प चुन रहे हैं। यह तरीका न सिर्फ EMI के बोझ को बांटने में मददगार है, बल्कि क्रेडिट स्कोर को मजबूत करने और होम लोन आसानी से पाने में भी सहायक है। हालांकि, यह जितना फायदेमंद दिखता है, उतना ही इसमें कुछ बातों का ध्यान रखना बेहद ज़रूरी है ताकि भविष्य में किसी भी तरह के विवाद से बचा जा सके।
क्यों भाई-बहन मिलकर घर खरीदना पसंद कर रहे हैं?
बदलते आर्थिक परिदृश्य और रियल एस्टेट बाजार की चुनौतियों के बीच, सिब्लिंग को-ओनरशिप (Sibling Co-Ownership) एक रणनीतिक और आकर्षक विकल्प के रूप में उभर रही है। यह दिखाता है कि लोग अब घर खरीदने के पारंपरिक नजरिए को कैसे बदल रहे हैं।
कल्पना कीजिए, तीस की उम्र में अपराजिता और अजीत, अपनी बचत को मिलाकर हैदराबाद में एक अपार्टमेंट खरीदने का फैसला करते हैं। यह सिर्फ एक वित्तीय लेन-देन नहीं है, बल्कि भरोसे, उम्मीदों और साझा जिम्मेदारी का एक ठोस प्रतीक है। इस आपसी सहयोग ने उन्हें अकेले घर खरीदने की सामर्थ्य की अड़चन को पार करने में मदद की और उन्हें भावनात्मक जुड़ाव के साथ घर का मालिक बनने का भरोसा दिलाया।
प्रॉपर्टी के भाव जैसे-जैसे बढ़ रहे हैं, कई भारतीयों के लिए अकेले घर खरीदना मुश्किल हो गया है। इस चुनौती से निपटने के लिए लोग अब आधुनिक और इनोवेटिव तरीके अपना रहे हैं। जब दो लोग मिलकर होम लोन लेते हैं, तो यह कई मायनों में फायदेमंद होता है:
- क्रेडिट एलिजिबिलिटी बढ़ती है।
- बैंक से बेहतर सौदेबाजी की क्षमता मिलती है।
- प्रॉपर्टी खरीदने में लगने वाले समय को भी कम करता है।
जब भाई-बहन को-एप्लिकेंट के रूप में शामिल होते हैं, तो उनकी संयुक्त आय होम लोन एलिजिबिलिटी को मजबूत करती है, बशर्ते दोनों क्रेडिट और रीपेमेंट की शर्तों को पूरा करते हों।
क्या कानूनन भाई-बहन साथ मिलकर घर खरीद सकते हैं?
जी हां, भारतीय कानून में भाई-बहन के बीच संपत्ति को सह-मालिक (Co-Owner) के रूप में खरीदना पूरी तरह से वैध है। इसके दो प्रमुख तरीके हैं:
1. टेनेंसी इन कॉमन (Tenancy in Common):
यह भारत में सबसे आम तरीका है। इसमें प्रत्येक सह-मालिक का प्रॉपर्टी में हिस्सा अलग-अलग होता है। हर सह-मालिक अपनी हिस्सेदारी को स्वतंत्र रूप से बेच या ट्रांसफर कर सकता है। किसी एक की मृत्यु होने पर उसका हिस्सा उसके कानूनी वारिसों को मिलता है।
2. जॉइंट टेनेंसी (Joint Tenancy):
इस व्यवस्था में प्रॉपर्टी सभी सह-मालिकों के संयुक्त अधिकार में होती है। यदि किसी एक सह-मालिक की मृत्यु होती है, तो उसका हिस्सा अपने आप बचे हुए सह-मालिकों में चला जाता है, भले ही कोई वसीयत न हो।
यह प्रावधान ट्रांसफर ऑफ प्रॉपर्टी एक्ट, 1882 की धारा 44 में स्पष्ट रूप से बताया गया है। इसके साथ ही, इनकम टैक्स एक्ट की धारा 56(2) के तहत करीबी रिश्तेदारों (जिसमें भाई-बहन भी शामिल हैं) के बीच गिफ्ट टैक्स से छूट दी गई है। इससे परिवार के अंदर संपत्ति का ट्रांसफर आसान हो जाता है।
इन गलतियों से बचें, ताकि रिश्तों में न आए दरार
होम लोन लेना एक बड़ी जिम्मेदारी और देनदारी होती है। इसलिए, भले ही आप भाई-बहन क्यों न हों, स्पष्ट संवाद और दस्तावेजीकरण बेहद जरूरी है। इन गलतियों से बचें:
1. मौखिक समझ पर निर्भर रहना:
भाई-बहन अक्सर यह मान लेते हैं कि मौखिक समझ ही काफी है, लेकिन यह बाद में विवाद की वजह बन सकती है। EMI चुकाने की जिम्मेदारी, डिफॉल्ट की स्थिति, प्रीपेमेंट और प्रॉपर्टी बेचने या पार्टनरशिप से निकलने के क्लॉज को लिखित में दर्ज करना बेहद ज़रूरी है। एक जॉइंट ओनरशिप एग्रीमेंट (Joint Ownership Agreement) बनाना सबसे अच्छा तरीका है।
2. भविष्य की अनिश्चितताओं को नजरअंदाज करना:
जीवन अप्रत्याशित है। हालात कभी भी बदल सकते हैं, जैसे नौकरी में बदलाव, शादी, बच्चों का जन्म, या कोई बड़ा आर्थिक झटका। इन सबका होम लोन के रीपेमेंट पर असर पड़ सकता है। अगर पहले से तैयारी नहीं रहेगी, तो डिफॉल्ट की स्थिति आ सकती है, प्रॉपर्टी को जबरन बेचना पड़ सकता है, और आपसी रिश्ते तनावपूर्ण हो सकते हैं। इसलिए, लोन रीफाइनेंसिंग, एक पार्टनर द्वारा दूसरे का शेयर खरीदना या पूरी संपत्ति बेचना जैसे संभावित हालात पहले से ही तय कर लें।
3. टैक्स implications पर ध्यान न देना:
यदि दोनों सह-मालिक और सह-उधारकर्ता (Co-Borrower) हैं, तो आयकर अधिनियम की धारा 80C (मूलधन पर) और 24(b) (ब्याज पर) के तहत टैक्स लाभ साझा किया जा सकता है। लेकिन, भविष्य में जब कभी शेयर ट्रांसफर होगा, तो स्टाम्प ड्यूटी और रजिस्ट्रेशन लागत लागू होगी। कई परिवार इस बात को भूल जाते हैं, जिससे बाद में वित्तीय दिक्कतें आती हैं।
सिब्लिंग को-ओनरशिप में जिम्मेदारी और विश्वास
भारत में परिवार का बंधन सामाजिक जीवन का केंद्र है। ऐसे में भाई-बहन के साथ प्रॉपर्टी खरीदना सिर्फ संपत्ति बनाना नहीं, बल्कि विश्वास, एकता और साझा आकांक्षा का प्रतीक बन जाता है। यह रक्षाबंधन या भाई दूज जैसे त्योहारों के साथ भी भावनात्मक रूप से जुड़ सकता है।
लेकिन, इस भावनात्मक जुड़ाव को वित्तीय समझदारी, कानूनी सटीकता और मजबूत दस्तावेजीकरण का सहारा मिलना चाहिए। सह-मालिकी तभी सबसे बेहतर काम करती है, जब सब कुछ लिखित रूप में हो, ताकि बाद में विवाद की कोई गुंजाइश न रहे। इसका सीधा मतलब है, भाई-बहन के साथ जॉइंट होम लोन लेने से पहले जल्दबाजी न करें। सब कुछ स्पष्ट रखें, ताकि दोनों अपनी जिम्मेदारी और उद्देश्य को सही तरीके से समझें और आपका साझा सपना सफल हो सके।